सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भेजा नोटिस
नई दिल्लीः आबादी के हिसाब से राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान की मांग करने वाली याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने सुनवाई करते हुए गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को नोटिस भेजकर 4 हफ्तों में जवाब मांगा है।
अल्पसंख्यक दर्जा
बता दें की यह याचिका बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक खत्म किया जाए अन्यथा देश के 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए.
आबादी के हिसाब से राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में मंगलवार को सुनवाई हुई. कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने पांच समुदायों के अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ अलग-अलग हाईकोर्ट में विचाराधीन मामलों को एक जगह स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका पर केंद्रीय गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को नोटिस भेजा है 4 हफ्तों में जवाब मांगा है. उल्लेखनीय है कि दिल्ली, मेघालय गुवाहाटी में हाईकोर्ट (High Court) पहले से ही राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सीज कर चुके हैं.
अक्टूबर 1993 में, इस अधिनियम के तहत अधिसूचना जारी की गई थी. अधिसूचना में पांच समुदायों को देशभर में अल्पसंख्यक घोषित किया गया था. इन समुदायों में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध पारसी शामिल हैं. जिसको लेकर बीजेपी नेता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर की थी. अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा कि अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक खत्म किया जाए, अन्यथा देश के 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए. उन्होंने नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी एक्ट 1992 के उस प्रावधान को खत्म करने की मांग की है, जिसके तहत देश में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है.
अश्विनी उपाध्याय ने यह भी मांग की है कि अगर कानून कायम रखा जाता है तो जिन 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, उन्हें राज्यवार स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए, ताकि उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ मिल सके. मामले में अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी. उन्होंने याचिका में आरोप लगाया है कि पंजाब जम्मू एवं कश्मीर में सिखों की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यकों का लाभ उठा रही है.
अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा कि केंद्र ने माइनॉरिटी एक्ट की धारा-2 (C) के तहत मुस्लिम, क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध जैन को अल्पसंख्यक घोषित किया है, लेकिन यहूदी बहाई को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया गया था. देश के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, मगर उनको अल्पसंख्यक का लाभ नहीं मिल पा रहा है. याचिका में बीजेपी नेता कहा कि लद्दाख, मिजोरम, लक्ष्यद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब मणिपुर में हिंदू की जनसंख्या अल्पसंख्यक के तौर पर है. उन्होंने कहा कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक होने के कारण हिंदुओं को अल्पसंख्यक का लाभ मिलना चाहिए, लेकिन उनका लाभ उन राज्यों के बहुसंख्यक को दिया जा रहा है.
शीर्ष अदालत में वरिष्ठ वकील सी. एस. वैद्यनाथन ने इस मामले में उपाध्याय का प्रतिनिधित्व किया. उपाध्याय ने शीर्ष अदालत का रुख किया है, ताकि हाईकोर्ट से सभी मामलों को स्थानांतरित करने की मांग की जा सके. जिस पर न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना वी. राम सुब्रमण्यम के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की पीठ ने गृह मंत्रालय, कानून एवं न्याय मंत्रालय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को नोटिस जारी किया है. आपको बता दें कि बीजेपी नेता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने पहली भी अर्जी दाखिल की थी, हालांकि उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया था.
9 राज्यों में क्या है हिंदुओं की स्थिति, देखिए-
1) लद्दाख - 1 फीसदी
2) मिजोरम - 2.75 फीसदी
3) लक्षद्वीप- 2.77 फीसदी
4) कश्मीर- 4 फीसदी
5) नागालैंड- 8.74 फीसदी
6) मेघालय- 11.52 फीसदी
7) अरुणाचल प्रदेश- 29.04 फीसदी
8) पंजाब- 38.49 फीसदी
9) मणिपुर- 41.29 फीसदी
HIGHLIGHTS
-हिंदुओं को मिल सकता है अल्पसंख्यक का दर्जा!
-सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भेजा नोटिस
-अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की है अर्जी